किसी भी भाषा का सिनेमा उस भाषा के समाज एवं संस्कृति की महत्वपूर्ण प्रस्तुति होती है। साहित्य की भाँति उसे भी समाज का दर्पण कहा जाता है जिसमें यथार्थ, कल्पना, और कला का संगम होता है। साहित्य में यह कार्य शब्द करते हैं जबकि सिनेमा में बोलती हुई तस्वीरें करती हैं। इसीलिए साहित्य की अपेक्षा सिनेमा लोगों में अधिक लोकप्रिय है। जब दर्शक फिल्म देखता है तो उसके कुछेक संवाद वर्षों तक उसके जुबान पर होती है। सिनेमा संचार का एक सशक्त माध्यम है, परिवर्तन का सांस्कृतिक संवाहक है एवं इतिहास का एक अच्छा स्रोत है। जब बात हिंदी सिनेमा की होती है तो हमारे मन में एक ऐसी तस्वीर उभरती है जिसने सभी भाषा क्षेत्रों व सीमाओं को तोड़ते हुए हिंदी को जन सुलभ और लोकप्रिय भाषा के पद पर स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय सिनेमा जगत की पहली सवाक फिल्म ‘आलमआरा’ की भाषा भी हिंदी ही थी। ‘आलमआरा’ से आरंभ हुई इस यात्रा ने ‘हिंदी मीडियम’ तक आते-आते अनेकों पड़ाव पार किये हैं। बॉलीवुड ने हिंदी को कभी विषय वस्तु के रूप में चुना तो कभी भाषिक माध्यम के रूप में अपनाया। सत्तर-अस्सी के दशक में ‘चुपके-चुपके’ फिल्म ने जनमानस के सम्मुख यह प्रश्न उपस्थित किया कि यदि हम हिंदी भाषा की शास्त्रीयता को ही महत्व देते रहे तो वह एक दिन “जनसामान्य की भाषा” की पदवी खो देगी। इस सदी की बनी हुई टेलीविजन सीरियल जैसे रामानंद सागर निर्मित ‘रामायण’, बी. आर. चोपड़ा निर्मित ‘महाभारत’, एवं चंद्रप्रकाश द्धिवेदी द्वारा निर्मित ‘चाणक्य’ ने हिंदी भाषा के महत्व और समाज में आज भी उसके महत्वपूर्ण स्थान की विषय वस्तु को लेकर हिंदी के प्रचार-प्रसार में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्तमान परिदृश्य में हिंदी सिनेमा जितनी लोकप्रिय हैं शायद ही किसी अन्य भाषा की फ़िल्में होंगी। आज विश्व में बनने वाली हर चौथी फिल्म हिंदी होती है। भारत में निर्मित होने वाली 60 प्रतिशत फ़िल्में हिंदी भाषा में बनती हैं, एवं वे ही सबसे अधिक चलन में होती हैं। जिस उत्साह से वह उत्तर भारत में देखी जाती है उतनी ही उत्साह से दक्षिण भारत में भी दिखाई जाती हैं। हिंदी फ़िल्में भारत के साथ-साथ विदेशों में भी देखी एवं पसंद की जाती हैं, इन फिल्मों ने देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी हिंदी को प्रोत्साहित, प्रचारित किया है। प्रस्तुत शोध पत्र भारतीय सिनेमा के माध्यम से देश-विदेशों में हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार की भूमिका का विश्लेषण है।
मुख्य शब्द : भाषा, हिंदी, सिनेमा, हिंदी सिनेमा, प्रचार-प्रसार
मनीष कुमार गुप्ता
(शोध छात्र, मीडिया अध्ययन विभाग,
महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार)
डॉ सुनील दीपक घोड़के
(असिस्टेंट प्रोफेसर, मीडिया अध्ययन विभाग
महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार)
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